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बुकशेल्फ- ‘असमय का अंधेरा’, सरल और संपृक्त कविताएं

Reporter Desk by Reporter Desk
August 8, 2025
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बुकशेल्फ, असमय का अंधेरा, सरल और संपृक्त कविताएं

बुकशेल्फ, असमय का अंधेरा, सरल और संपृक्त कविताएं

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• डॉ. सुधीर सक्सेना
नोबेल पुरस्कार विजेता पोल-कवयित्री विश्वावा शिंबोर्स्का की कविता-पंक्तियां हैं : ‘हम राजनीतिक युग की संतानें हैं।’ शिंबोर्स्का की ये पंक्तियां जहां हमारे समय के मर्म को उद्घाटित करती है, वहीं यह भी सच है कि कोई भी चेतना संपन्न रचनाकार अपने समय की स्थितियों और प्रवृत्तियों से उदासीन या अविचलित नहीं रह सकता। सद्य-प्रकाशित कविता-संकलन ‘असमय का अंधेरा’ पर दृष्टिपात करें तो यह शीर्षक कतई समय निरपेक्ष या अराजनीतिक प्रतीत नहीं होता, बल्कि हमारे समय पर साहसिक टिप्पणी नज़र आता है तथा दर्शाता है कि कवि के लिये समय मायने रखता है और असमय का अंधेरा उसे सालता है।

इसके साथ ही उसे धूमिल के कहे ‘कविता घेराव में बौखलाये हुये आदमी का संक्षिप्त एकालाप है’ मार्का खाने में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता, क्योंकि कवि एक तो एकालाप की बजाय वार्तालाप की मुद्रा में नजर आता है, दूसरे वह अपने को जलाकर फैलायें उजास’ की बात तो करता ही है, साथ ही ‘कविता की एक पंक्ति से टूटेगी नीरवता’ कहकर कविता में अपने गहरे यकीन को भी व्यक्त करता है।

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सुरेश गुप्ता कविता की दुनिया में विचरते भले ही रहे हैं, लेकिन ‘असमय का अंधेरा’ कविता की दुनिया में उनके पदार्पण का पर्याय है। कविता के बीहड़ में यह उनका पहला डग है, लेकिन वह डगमग नहीं, बल्कि सधा हुआ है। वह संवेदनशील है, क्योंकि उसे ‘बहुत कचोटता है। यह असमय का/दिन का अंधेरा।’ दिन है और अंधेरा है, यह हमारे समय का उदघाटन है। यह हमारे समय की विडंबना है।

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कहें तो त्रासदी है और हमारी चिंता का सबब भी। कवि के तईं कविता का फलक देखिये : ‘कविता कोई नहीं पढ़ता/कविता/सबको पढ़ना चाहती है’ वह आगे कहता है : ‘कविता जिसे कोई/पढ़ना नहीं चाहता/चाहती है युद्ध में शांति/शांति में समरसता।’ यहां मुझे बरबस रूसी कवि कायसिन कुलियेव की कविता याद आती है, जो बदी के बरक्स ने की, युद्ध के बरक्स शांति, असत्य के बरक्स सत्य और अंधकार के बरक्स रोशनी की हिमायत करती है।

सुरेश गुप्ता का कविर्मन प्रेमाकुल है। कविताओं में प्रेम के कई ‘शेड्स’ हैं। वह एकांत में एकांतिक कोना तलाशता है। वह बज़िद कहता है : प्रेम किस्मत को नहीं मानता।’ उसके लिए ‘मेरा नहीं ‘हमारा’ होना मायने रखता है। प्रेम और उसकी तलाश पारस्परिक है। प्राय: कवियों की मानिंद वह ‘नास्टैज्लिक’ है; अपने व्यतीत को लेकर भावुक। उसकी कविताओं में घर, परिवार और मित्रों के लिये स्पेस है।

वहां मां हैं, पिता है, बेटा है, खिलचीपुर है, गाड़गंगा है, कोरोना है। वहां मित्रों के परिचित आत्मीय चेहरे हैं। मित्रों – महेन्द्र गगन और मनोज पाठक के लिये लिखी कविताएं अच्छी बन पड़ी हैं और उनमें महेन्द्र और मनोज के चेहरे बखूबी झाँकते हैं। कविता ‘महेन्द्र का होना’ बरबस भोपाल के तत्समय के मिजाज को भी बयां करती है।

सुरेश अपनी कविताओं में व्यक्तियों को उपादानों के साथ और जगहों को सन्दर्भों के साथ लाते हैं और यही बात उनकी कविताओं के विन्यास को ताकत देती है। मसलन पिता कविताओं में कुर्सी और आईने के साथ आते हैं। बेटे मनु के बहाने वह छूट गयी, बिसरा और बिलमा दी गयी चीजों को याद करते हैं।

कविता में चित्रित खिलचीपुर फ़कत मध्यप्रदेश का खिलचीपुर नहीं है, बल्कि वह अनगिन खिलचीपुरों का प्रतिनिधित्व करता है। प्रसंगवश यह भी कि कवि को कविता की ताकत में यकीन है और कविता उसे साहस देती है और आश्वस्ति भी। वह कहता भी है कि कविता तुम्हें उजाड़ेगी नहीं और सिकोड़ेगी भी नहीं।

सुरेश गुप्ता की कविताएं सरल मन की सहज अभिव्यक्तियां हैं। वहां कृत्रिमता या आडंबर नहीं है और न ही जटिलता। उसे असमय का दिन का अंधेरा कचोटता है। जो कवि साहसपूर्वक कह सकता है कि जो डर रहे हैं/ अपने खिलाफ/आवाज उठने के डर से, बिलाशक चेहरों को चीन्ह रहा है और उम्मीद जगाता है कि आगामी कविताओं में वह उनकी शिनाख्त भी करेगा। मुक्तिबोध के प्रश्न-पार्टनर तुम्हारी पालीटिक्स क्या है, जवाब इन कविताओं में निहित है। कविर्लोक में कवि सुरेश गुप्ता का स्वागत और स्वस्ति कामना।
………………………………………………………………………………………
• असमय का अंधेरा (कविता संकलन) : सुरेश गुप्ता
• प्रकाशक : प्रथमेश प्रिंटर्स, भोपाल मूल्य : रू. 100/-
…………………………………………………………………………………………………….

Reporter Desk

Tags: असमय का अंधेराकविताएं

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