नौरोजाबाद, देशबन्धु। भारतीय कोयला खदान मजदूर संघ (बीकेकेएमएस) जोहिला क्षेत्र में आयोजित अधिवेशन में जिस तरह अपात्र व्यक्तियों की ताजपोशी कर दी गई, उसने संगठन की जड़ों को हिला कर रख दिया है। जिस संगठन का उद्देश्य श्रमिकों की लड़ाई लड़ना और उनके हक की आवाज बुलंद करना था, वहीं आज पदों की सौदेबाजी और राजनीतिक हितों की पूर्ति का अड्डा बनता जा रहा है। अधिवेशन में निष्ठावान कार्यकर्ताओं और वर्षों से संघर्षरत पदाधिकारियों को दरकिनार कर ऐसे लोगों को कुर्सी पर बैठा दिया गया जो न तो संगठन के सक्रिय सदस्य रहे हैं और न ही उसकी विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध। कई तो अन्य संगठनों से जुड़े रहे, कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय रहे और चुनाव प्रचार तक में शामिल रहे।
इतना ही नहीं, जिम्मेदार पदों पर उन चेहरों को ताज पहनाया गया जिन पर चोरी के आरोप तक लगे हैं और जिन्होंने संगठन के नाम पर आवंटित भवन बेचने तक का काम किया है।
वरिष्ठ नेताओं का आरोप है कि यह सब कुछ खुलेआम लेन-देन का नतीजा है। लाखों रुपये के सौदेबाजी के आरोपों ने न केवल बीएमएस की साख पर गहरा धब्बा लगाया है बल्कि श्रमिकों के विश्वास को भी चोट पहुंचाई है। कुलदीप सिंह गुर्जर पर यह आरोप भी लगा कि उन्होंने वरिष्ठ पदाधिकारियों की एक न सुनी और नियमों को ताक पर रख मनमर्जी से घोषणा कर मौके से रफूचक्कर हो गए।
बीएमएस के लिए यह स्थिति किसी खतरे की घंटी से कम नहीं। जिस संगठन की पहचान श्रमिकों के संघर्ष और त्याग से थी, वही आज पैसों के बल पर पद बेचने के आरोपों से जकड़ा हुआ है।
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श्रमिकों में गुस्सा चरम पर है और संगठन धराशायी होने की कगार पर खड़ा है। श्रमिक दृष्टि से सवाल यही है कि जब श्रमिकों की आवाज दबा दी जाएगी और उनके त्याग को पदों की बोली में तौला जाएगा, तब संगठन की आत्मा बची भी कहां रहेगी?