दमोह. प्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग में इन दिनों हड़कंप का माहौल हैं इसकी वजह दमोह में डेढ़ दर्जन फर्जी शिक्षकों का मामला संज्ञान में आने को बताया जा रहा हैं. बताया जा रहा है कि एक तरफ विभागीय मंत्री मास्टरों द्वारा ठेके पर स्कूल चलाए जाने से दुखी हैं वहीं शिक्षक फर्जी दस्तावेज पर नौकरी कर रहे हैं.
बताया जा रहा है कि जिले में ऐसे ही करीब 20 शिक्षक फर्जी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर विभिन्न सरकारी स्कूलों में सालों से अपनी सेवाएं दे रहे हैं. विभागीय जांच में इनके फर्जी दस्तावेजों का खुलासा भी हो चुका है. मप्र उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक आदेश जारी कर संबंधितों के खिलाफ एक्शन लेने को कहा है लेकिन हर बार की तरह विभागीय अधिकारी जांच के नाम पर मामलों को लंबा खींच रहे हैं.
ये शिक्षक हैं जांच के दायरे में
अधिकारिक सूत्रों के अनुसार,विभागीय जांच में अब तक जिन शिक्षकों की शैक्षणिक योग्यता वाली अंकसूचियां,प्रमाण पत्र फर्जी पाए गए , उनमें संजीव दुबे -आलमपुर, मंगल सिंह ठाकुर-चंदना, प्रीति खटीक -सतपारा, प्रभु दयाल पटेल -बकेनी, बहादुर सिंह लोधी – जोरतला खुर्द, अरविंद कुमार असाटी -हिनौती पुतरीघाट, कल्याण प्रसाद झारिया-पटेरिया माल, रश्मि सोनी – सरखड़ी, सुनील कुमार पटेल -पिपरोधा छक्का, नीलम तिवारी -मैनवार, आशा मिश्रा -गढ़ोला खांडे, पुष्पा दुबे -घनश्याम पुरा, महेश पटेल – सुरादेही, प्रवीण सिंघई- भैंसखार , उमेश कुमार राय -बह्मनी, दीपचंद पाल -जामुन,राम प्रसाद उपाध्याय -खबैना, मीना शर्मा -चौपरा रैयतवारी व मनोज गौतम -सुजनीपुर शामिल हैं.
एक नेता का भतीजा भी शामिल
सूत्रों के अनुसार,विभागीय जांच के दायरे में आए उक्त शिक्षकों में किसी की ग्रेजुएशन तो किसी की बीएड की अंकसूची संबंधित विश्वविद्यालयों व शिक्षण संस्थानों से कराए गए सत्यापन में या तो गलत पाई गई या इनका कोई रिकॉर्ड ही संस्थानों में नहीं मिला. बताया जाता है जांच के दायरे में आए शिक्षकों में एक शिक्षक प्रदेश स्तर के एक नेता का निकटतम संबंधी भी है. इसके चलते बाकी दोषियों को भी अघोषित अभयदान मिला हुआ है.
अरसे से नहीं हो पाई जांच
खास बात यह कि यह मामला कोई एक-दो दिन का नहीं,बल्कि कुछ प्रकरण तो सात साल पुराने हैं. वहीं कुछ तीन तो कुछ चार साल पुराने. विभाग ने प्राथमिक कार्यवाही के नाम पर चंद शिक्षकों को निलंबित किया और फिर कुछ दिन बाद ही बहाल भी कर दिया गया,लेकिन धोखाधड़ी के इन प्रकरणों में न तो आपराधिक मामले दर्ज हुए न ही संबंधितों को दिए गए वेतन की रिकवरी की कोई प्रक्रिया अपनाई गई.