नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में साफ कर दिया है कि आधार कार्ड को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता है. अदालत ने कहा कि आधार को पहचान के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन यह किसी व्यक्ति की भारतीय नागरिकता साबित नहीं करता है. यह टिप्पणी बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के एक मामले की सुनवाई के दौरान की गई.
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने कहा कि आधार का इस्तेमाल सिर्फ आधार अधिनियम के दायरे में ही किया जा सकता है. कोर्ट ने 2018 के पुट्टास्वामी केस के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें पांच जजों की बेंच ने यह स्पष्ट किया था कि आधार संख्या या उसका प्रमाणीकरण नागरिकता का प्रमाण नहीं है.
क्या है पूरा मामला?
यह मामला बिहार में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) से जुड़ा है, जिसके तहत मतदाता सूची को अपडेट किया जा रहा है. इस प्रक्रिया में चुनाव आयोग ने आधार कार्ड को नागरिकता का निर्णायक प्रमाण मानने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद मतदाता सूची से लगभग 65 लाख लोगों के नाम हटा दिए गए. राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. RJD का पक्ष वरिष्ठ एडवोकेट प्रशांत भूषण रख रहे थे.
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पुट्टास्वामी केस और आधार अधिनियम:
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आधार अधिनियम, 2016 की धारा 9 के अनुरूप है, जिसमें साफ-साफ लिखा है कि आधार नंबर किसी भी व्यक्ति की नागरिकता या भारतीय नागरिक होने का प्रमाण नहीं है. 2018 में पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने भी इस सिद्धांत पर अपनी मुहर लगाई थी. यह फैसला निजता के अधिकार पर एक ऐतिहासिक फैसला था, जिसमें आधार की वैधता को भी चुनौती दी गई थी.