नई दिल्ली. हिंदू धर्म में श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व है. यह 16 दिवसीय अवधि पितरों के प्रति श्रद्धा, सम्मान और कर्तव्य निभाने का समय है. इस दौरान किए गए अनुष्ठानों से पितर तृप्त होते हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है. यहां श्राद्ध के कुछ महत्वपूर्ण नियम और ध्यान रखने योग्य बातें बताई गई हैं.
श्राद्ध का महत्व और अर्थ
‘श्राद्ध’ का शाब्दिक अर्थ है ‘श्रद्धा से दिया गया’. यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि पितरों के प्रति सम्मान और उनके ऋण को चुकाने का एक तरीका है. शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध से पितर पूरे साल प्रसन्न रहते हैं और परिवार को धन, यश, स्वास्थ्य और मोक्ष का आशीर्वाद देते हैं.
श्राद्ध कर्म के लिए मुख्य नियम
पिंड और भोजन सामग्री: श्राद्ध में गाय का घी, दूध, दही, जौ, कांगनी, मटर, सरसों और तिल का प्रयोग करना शुभ माना जाता है. तिल का अधिक उपयोग करने से श्राद्ध का फल अक्षय होता है.
पात्र और स्थान: श्राद्ध के लिए चांदी, कांस्य, तांबे या सोने के पात्र श्रेष्ठ होते हैं. इनकी अनुपस्थिति में पत्तल का उपयोग किया जा सकता है. श्राद्ध हमेशा अपनी जमीन पर ही करें, दूसरे की भूमि पर नहीं.
ब्राह्मण को भोजन: श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन कराना अनिवार्य है. भोजन परोसते समय बर्तन दोनों हाथों से पकड़ें और ब्राह्मण मौन रहकर भोजन करें.
समय और अनुष्ठान: श्राद्ध कर्म दिन के समय, खासकर आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में करना सबसे अच्छा माना जाता है. रात्रि, संध्याकाल और शुक्ल पक्ष में श्राद्ध नहीं करना चाहिए. पितृ तर्पण, पिंड दान, वस्त्र और दक्षिणा देना आवश्यक है.
अन्य ध्यान रखने योग्य बातें:
भोजन में से कुछ भाग गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटियों के लिए अलग रखें.
श्राद्ध गुप्त रूप से करें ताकि दूसरों की नजर न पड़े.
यदि कोई भिखारी आए तो उसे आदरपूर्वक भोजन कराएं.
पिता का श्राद्ध पुत्र द्वारा ही किया जाना चाहिए.
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श्राद्ध के प्रकार
भविष्य पुराण के अनुसार, श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जैसे नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण. हर प्रकार का श्राद्ध अलग-अलग उद्देश्यों के लिए किया जाता है. विधिपूर्वक किए गए श्राद्ध से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और पितरों का आशीर्वाद मिलता है.