2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के किसानों की आय दोगुनी करने का संकल्प उठाया तो पहली बार इसमें हरित क्रांति और श्वेत क्रांति के साथ नीली क्रांति यानी मत्स्य पालन को भी शामिल किया गया…और 10 सितंबर 2020 को आत्मनिर्भर भारत के तहत मत्स्य पालन के क्षेत्र में आजादी के बाद की सबसे बड़ी योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के रूप में की गई। उद्देश्य था, 5 साल में 20 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के निवेश के साथ इस सेक्टर की सूरत बदलने का। दो साल में इस योजना ने मत्स्य पालन सेक्टर में उत्पादन से लेकर निर्यात तक अहम योगदान दिया है। अब बारी है इससे आगे बढ़ने की, तभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं, “वह घड़ी
आ गई है, कि नीली क्रांति को अशोक चक्र के नीले रंग में चित्रित किया जाए।…” विश्व के सबसे बड़े झींगा उत्पादक और विश्व में दूसरे सबसे बड़े मछली उत्पादक देश, भारत के मत्स्य क्षेत्र में मुनाफे की भरपूर संभावनाएं हैं। उसी उद्देश्य से 2015 में शुरू नीली क्रांति योजना
और 2020 में 20 हजार 50 करोड़ रुपये के निवेश वाली प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से मछली उत्पादन में तेजी से वृद्धि हो रही है। नई तकनीक, आर.ए.एस., बायोफ्लॉक और केज कल्चर जैसे नए तरीकों से मछली की उत्पादकता बढ़ाई जा रही है। योजना में मछली किसानों और कारोबार से जुड़े लोगों की सुरक्षा के लिए उनका बीमा, देश में पहली बार मछली उद्योग से जुड़े जहाजों का भी बीमा शुरू हुआ है। इसके साथ ही सजावटी मछली पालन और समुद्री खरपतवार संवर्धन से महिलाओं का सशक्तीकरण हो रहा है। आजादी के बाद जिन सेक्टर पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया, उसमें मछली पालन का सेक्टर भी शामिल था। आजादी के बाद से 2014 तक सिर्फ 3682 करोड़ रु. का निवेश इस सेक्टर में किया गया, जबकि 2014 से 2024-25 तक पीएम मत्स्य संपदा योजना, नीली क्रांति योजना और फिशरीज
इंफ्रास्ट्रक्चरल डेवलपमेंट फंड सहित 30,572 करोड़ रु. अनुमानित खर्च के साथ तेजी से काम चल रहा है। अकेले पीएमएमएसवाई से 55 लाख लोगों के लिए नए रोजगार सृजन का लक्ष्य 2025 तक रखा गया है।
भारत में मछली पालन और जलीय कृषि के लिए मौजूद क्षेत्र और विशाल संभावनाओं से संपन्न व्यवस्था का ही असर है कि सी-फूड का जो निर्यात 2020-21 में 1.15 मिलियन मीट्रिक टन था वो 2021-22 में बढ़कर 1.51 मिलियन मीट्रिक टन हो गया है। भारत विश्व में 112 देशों को सी-फूड निर्यात करता है और विश्व में सी-फूड का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2022 को “कारीगर मत्स्य पालन और जलीय कृषि के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष” के रूप में घोषित किया है। ऐसे में मछली पालन शुरू करने के लिए सब्सिडी, महिलाओं और अनुसूचित जाति को इस सेक्टर में व्यवसाय शुरू करने के लिए 60% अनुदान वाली प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना का उपयोग करके नीली क्रांति को गति दें और अपनी सामाजिक आर्थिक स्थिति में सुधार करने के साथ ही मछली उत्पादन में देश को नंबर-एक बनाने के संकल्प को ध्यान में रखकर योगदान दें।
मत्स्य पालन क्षेत्र को सनराइज सेक्टर की मान्यता अभी तक यह किया हासिल देश में बढ़ रहा है मत्स्य उत्पादन
2016-2017 114.31 लाख टन
2017-2018 127.04 लाख टन
2018-2019 135.73 लाख टन
2019-2020 141.64 लाख टन
2020-2021 147.25 लाख टन
2021-2022 161.87 अंतरिम
कोविड-19 महामारी के वैश्विक प्रभाव के कारण मत्स्य के निर्यात में 2020-2021 में गिरावट आई थी। उसके बाद से 2021-2022 में निर्यात 57, 586 करोड़ रुपये का रहा है। जो 2020-2021 में 43,721 करोड़ रुपये था।
देश के हर हिस्से में, मछली के व्यापार-कारोबार को ध्यान में रखते हुए, पहली बार देश में इतनी बड़ी योजना बनाई गई। आजादी के बाद इस पर जितना निवेश हुआ, उससे कई गुना ज्यादा निवेश प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना में किया जा रहा है। साथ में नीली क्रांति योजना चला रहे हैं। इन्हीं प्रयासों का नतीजा है कि देश में मछली उत्पादन के सारे रिकार्ड टूट गए हैं। -नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री।
पीएमएमएसवाई में क्या-क्या हुआ
10,225
हेक्टेयर तालाब क्षेत्र में जल कृषि।
6.77
लाख मछुआरा परिवार
को सहायता।
3102
फुटकर मछली मार्केट और कियोस्क की शुरुआत।
3230
नाव बदली गईं।
1270
सजावटी मछली पालन इकाइयां शुरू।
273
गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वाले जहाज बढ़े।
16
लाख लोग अभी तक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हुए लाभांवित।
720
मत्स्य कृषि उत्पादक संगठन बने।
40.65
लाख मछुआरे व मछली पालक हुए प्रशिक्षित।
7268
करोड़ रुपये से ज्यादा के प्रस्ताव 8 अगस्त 2022 तक मंजूर।
अब इसकी बारी योजना में 2024-2025 तक पूरे होंगे ये बड़े लक्ष्य
मछली उत्पादन 2018-2019 के 13.75 मिलियन मीट्रिक टन से बढ़ाकर 2024-2025 में 22 मिलियन मीट्रिक टन करना। मछली उत्पादन में सालाना 9 फीसदी की वृद्धि करना।
मछली निर्यात से आय 2018-2019 में 46,589 करोड़ रु. था जिसे बढ़ाकर 2024-2025 में 1 लाख करोड़ रु. यानी आय दोगुना करना।
मछली उत्पादन के बाद होने वाले नुकसान को 20-25 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी पर सीमित करना।
प्रति व्यक्ति मछली की खपत 5 किलो से बढ़ाकर 12 किलोग्राम करना।
पीएमएमएसवाई से जीवन और आजीविका की सुरक्षा 34 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को योजना में किया गया है शामिल। मछुआरों को लीन सीजन में मासिक 1500 रुपये की सहायता अधिकतम 3 महीने दी जाती है। पिछले दो वर्षों के दौरान 8.12 लाख मछुआरों को दी गई सहायता।
एक हजार से अधिक बायोफ्लोक इकाइयों और 1500 से अधिक रिसक्र्युलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम स्वीकृत। मछली पालक किसानों को पहली बार किसान क्रेडिट कार्ड किए जा रहे हैं जारी। अभी तक करीब 88 हजार किसान कार्ड जारी और 1060 करोड़ रुपये का लोन मंजूर। 5 लाख रुपये का समूह बीमा कवरेज, दो साल में 27.51 लाख मछुआरों का किया गया बीमा। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से 16 लाख से अधिक मछली पालक या मछुआरे लाभान्वित। अप्रैल, 2020 से मार्च, 2022 तक 34,700 महिला लाभार्थियों के लिए करीब 1120 करोड़ रु. की परियोजनाओं को मंजूरी दी…ताकि मिल सके जनता और मछुआरों को उचित मूल्य की जानकारी.. राष्ट्रीय मत्स्यिकी विकास
बोर्ड ने 2018 में फिश मार्केट प्राइस इंफॉर्मेशन सिस्टम शुरू किया। इसमें व्यापारिक रूप से महत्वपूर्ण समुद्री और अंतरदेशीय मछलियों के चुनिंदा थोक व खुदरा के 88 बाजारों से भाव लेकर मछली की कीमतें रियल टाइम पर पोर्टल पर अपलोड और प्रसारित की जाती है।