जबलपुर, देशबन्धु. प्रदेश के जंगलों में लगने वाली आग सिर्फ पेड़ों को ही नहीं, बल्कि हजारों ग्रामीणों की रोजी-रोटी को भी नुकसान पहुंचा रही है. आईआईटी इंदौर और भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (आईआईएफएम) के एक संयुक्त अध्ययन में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, जंगल की आग से गैर-लकड़ी वन उत्पादों को भारी नुकसान हो रहा है, जिससे इन पर निर्भर आदिवासी और ग्रामीणों की कमाई प्रभावित हो रही है.
रिपोर्ट में सामने आई बात- प्रदेश के होशंगाबाद वन क्षेत्र में बार-बार लगने वाली आग से वहां मिलने वाले वन उत्पाद- महुआ, गोंद, चार बीज और जड़ी-बूटियां तेजी से नष्ट हो रहीं हैं. इनसे हजारों ग्रामीणों की रोजी-रोटी चलती है लेकिन अब जंगल की आग उनकी कमाई पर असर डाल रही है. आईआईएम इंदौर और आईआईएफएम की संयुक्त रिसर्च में यह बात सामने आई है कि अगर आग पर नियंत्रण नहीं पाया गया, तो यह जंगलों के साथ-साथ स्थानीय लोगों की आजीविका को भी खतरे में डाल सकता है. जंगल की आग से जंगलों को तो नुकसान हो ही रहा है, लेकिन सबसे ज्यादा असर उन लोगों पर पड़ रहा है, जिनकी जिंदगी इन वन उत्पादों पर निर्भर करती है. छोटे किसानों और वन उपज संग्रह करने वाले परिवारों की आय में भारी गिरावट आई है.
पूरी तरह नहीं नुकसानदायक- रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जंगल की आग पूरी तरह नुकसानदायक नहीं होती. अगर इसे नियंत्रित तरीके से जलाया जाए, तो यह वन उत्पादों की पुनरुत्पत्ति में मदद कर सकती है. लेकिन समस्या यह है कि बिना निगरानी के आग फैल जाती है और कई बार यह फसलों और गांवों तक पहुंच जाती है. ग्रामीण का कहना है कि पहले महुआ और गोंद से अच्छा पैसा कमा लेते थे, लेकिन अब आग लगने से सब जल जाता है.
सरकार को कुछ करना चाहिए ताकि हम दोबारा सही तरीके से काम कर सकें.
शोध में दिए तीन बड़े सुझाव- शोध में तीन बड़े सुझाव भी दिए गए हैं जिनमें से प्रथम जंगलों में निगरानी बढ़ाई जाए ताकि आग फैलने से पहले ही उसे रोका जा सके. दूसरी महुआ लड्डू, गोंद कुकीज और हर्बल साबुन जैसे उत्पादों को बढ़ावा दिया जाए, जिससे ग्रामीणों की आय बढ़ सके एवं तीसरे सुझाव में कहा गया हैं कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करे ताकि ग्रामीणों को उनके उत्पाद का सही दाम मिल सके.
आग पर्यावरण ही नहीं आजीविका के लिए भी संकट- शोध रिपोर्ट बताती है कि जंगल की आग सिर्फ पर्यावरण का नहीं, बल्कि लोगों की आजीविका का भी मुद्दा है. सरकार को इन सुझावों को लागू करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बचाने की जरूरत है. जंगल की आग का असर सिर्फ पेड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हजारों ग्रामीणों की जिंदगी को भी प्रभावित कर रही है. अब देखना होगा कि सरकार और प्रशासन इस रिपोर्ट के आधार पर क्या कदम उठाते हैं.