जबलपुर. अधकचरा तैयारियों के बीच राजनीतिक रोटियां सेंकने के नाम पर जनप्रतिनिधियों ने प्रदेश के हजारों होनहार विद्यार्थियों का भविष्य अधर में डाल दिया. हिन्दी मीडियम से इंजीनियरिंग की पढ़ाई में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों की स्थिति अब घर के रहे न घाट के जैसी हो गई हैं और इस स्थिति में हिन्दी माध्यम से इंजीनियरिंग और डॉक्टरी की पढ़ाई का दंभ भरने के वाले गाल बजाऊ नेता अब शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन रेत में छिपा कर बैठ गए हैं.
नहीं मिल रही पाठ्य सामग्री
प्रदेश में हिंदी मीडियम से इंजीनियरिंग की पढ़ाई लगभग पूरी तरह फेल हो चुकी हैं. सूत्रों के अनुसार किताबों की कमी के चलते हिंदी मीडियम में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियोंं को भी अंग्रेजी किताबों से पढ़ाई करनी पढ़ रही हैं. गाल बजाऊ नेताओं की अति उत्साह में की गई घोषणा के दो साल बाद भी हिंदी माध्यम के इंजीनियरिंग छात्रों के लिए किताबों का अनुवाद पूरा नहीं हो पाया है. न तो छात्रों को समय पर पाठ्य सामग्री मिल रही हैं और न हीं उन्हें पढ़ाने वाले शिक्षक पूरी तरह हिंदी में पढ़ा पा रहे हैं. परीक्षा की तैयारी में आ रही कठिनाई के साथ परीक्षार्थियों को यह भी भय सता रहा हैं कि आखिर वे परीक्षा किस माध्यम में देंगे.
तैयारी नहीं थी तो क्यों दांव पर लगाया भविष्य
शहर के साथ ही प्रदेश भर के हिन्दी माध्यम के इंजीनियरिंग विद्यार्थियों का यही सवाल हैं कि जब कोई तैयारी नहीं थी तो उनके भविष्य को क्यों दांव पर लगा दिया गया. प्रदेश में दो साल बीत जाने के बाद भी हिंदी माध्यम के इंजीनियरिंग छात्रों के लिए द्वितीय सेमेस्टर की किताबें तैयार नहीं हो सकी है. 2023 में शुरू हुआ यह काम अब भी अधूरा पड़ा है. वहीं तीसरे सेमेस्टर की किताबों का कोई अता-पता नहीं है.
सुलभ करने की मंशा में दुर्लभ हुई पढ़ाई
बताते हैं तकनीकी शिक्षा को मातृभाषा में सुलभ कराने की मंशा से राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी) को यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी, लेकिन जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल उलट है. विद्यार्थियों का आरोप हैं कि सुलभ करने के चक्कर में इंजीनियरिंग की शिक्षा अब और भी दुर्लभ हो गई हैं. समय पर न तो पाठ्य सामग्री मिल पाती हैं न ही परीक्षा की सही तैयारी हो पा रही हैं. विषयों की गहराई से समझ पाना दूर की बात परीक्षा को पास करना भी टेढ़ी खीर हो गया हैं. इस काम को समय पर पूरा न कर पाने के कारण प्रदेश के हिंदी माध्यम के छात्रों को न सिर्फ परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है बल्कि उन्हें अपना भविष्य भी अंधकारमय नजर आ रहा हैं.
बताया जा रहा हैं कि आल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एज्युकेशन (एआईसीटीई) ने 2023 में राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी) को इंजीनियरिंग और डिप्लोमा द्वितीय वर्ष के लिए 88 किताबों का अनुवाद करने का कार्य सौंपा था. इनमें से 42 इंजीनियरिंग की किताबें और 46 डिप्लोमा की किताबें शामिल थीं. हालांकि, इनमें से सिर्फ 60 किताबों का ही हिंदी में अनुवाद किया जा सका हैं. आरजीपीवी के अधिकारियों ने बताया कि, देशभर के करीब 176 शिक्षक और अनुवादक इन किताबों के हिंदी अनुवाद में लगे हुए हैं. आईआईटी दिल्ली, आईआईटी रुड़की, आईआईटी कानपुर, आईआईटी मुम्बई और आईआईटी मद्रास जैसे बड़े संस्थानों के प्रोफेसर और शिक्षक भी इस काम में शामिल हैं.
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अधिकारियों का कहना है कि, किताबें एक साथ न मिलने के कारण अनुवाद में देरी हो रही है. हिंदी में इंजीनियरिंग किताबों का अनुवाद छात्रों के लिए न केवल अध्ययन लाभ देगा, बल्कि समान अवसरों के सृजन में भी मदद करेगा. इससे हिंदी माध्यम में पढऩे वाले छात्र समान स्तर पर अपने पाठ्यक्रम को समझने और पढऩे में सक्षम होंगे. वहीं छात्रों का कहना हैं कि उनके लिए तो का वर्षा जब कृषि सुखाने जैसी स्थिति हैं जब वर्तमान में हजारों विद्यार्थियों का भविष्य चौपट हो जाएगा तब जाकर अनुवादित पुस्तकें आईं तो उससे क्या होगा.