जबलपुर, देशबन्धु. शेख़ इब्राहीम ज़ौक का ये शेर मेडिकल कॉलेज में व्याप्त अव्यवस्थाओं पर एक दम खरा उतरता है. इन दिनों नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज अस्पताल के मर्चुरी में अपनी बारी की प्रतीक्षा करते शवों के हालात पर ही लिखा गया हो. सरकारी तंत्र और कर्मचारियों की कमी के सामने विवश करीब 13 शव पोस्टमार्टम (पीएम) के इंतजार में कतार में लगे हैं.
सूत्रों के अनुसार नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल अस्पताल में व्यवस्थाओं की बदहाली का आलम यह है कि अब मृतकों को भी अंतिम संस्कार से पहले लंबा इंतजार करना पड़ रहा है. पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल की मर्चुरी में 13 शव कतार में हैं लेकिन कर्मचारियों की कमी के कारण समय पर उनकी जांच नहीं हो पा रही है. संभाग के सबसे बड़े मेडिकल अस्पताल में एक दिन में केवल 6 शवों का पोस्टमार्टम करने की क्षमता है, जबकि मांग कहीं ज्यादा है.
नतीजा यह है कि बाकी शवों को अगले दिन तक इंतजार करना पड़ता है. परिजनों का आरोप है कि वे दो दिनों से शवों का पोस्टमार्टम कराने के लिए परेशान हो रहे हैं लेकिन प्रक्रिया पूरी नहीं हो रही. मृतक के परिजन धनसिंह लोधी ने अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए कहा, वे गत दिवस सुबह से शव लेकर आए हैं, लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई. उन्हें कल भी इंतजार करना पड़ा था. उन्होंने कर्मियों पर लापरवाही का आरोप लगाया हैं. बताते हैं वर्तमान में मेडिकल अस्पताल की मरचुरी में केवल 6 डॉक्टर और 2 वर्कर पदस्थ हैं, जो बढ़ती जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ हैं.
फोरेंसिक विभाग ने लिखा पत्र- इस समस्या को देखते हुए फोरेंसिक विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विवेक श्रीवास्तव ने उच्च अधिकारियों को पत्र लिखकर कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने की मांग की है. उन्होंने बताया कि वे लगातार अधिक स्टाफ की मांग कर रहे हैं. सीमित संसाधनों के साथ काम करना मुश्किल हो रहा है, जिससे शवों के पोस्टमार्टम में देरी हो रही है. पोस्टमार्टम में देरी से मृतकों के परिजन परेशान हैं. वे अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए अस्पताल में लंबा इंतजार करने को मजबूर हैं.
इस दौरान उन्हें प्रशासन की उदासीनता का भी सामना करना पड़ रहा है. इस समस्या का समाधान निकालने के लिए अस्पताल प्रशासन को जल्द से जल्द कदम उठाने होंगे. यदि कर्मचारियों की संख्या नहीं बढ़ाई गई तो आने वाले दिनों में हालात और भी बदतर हो सकते हैं. शवों को समय पर पोस्टमार्टम नहीं मिलने से न केवल परिजनों की पीड़ा बढ़ती है, बल्कि न्यायिक मामलों में भी देरी हो सकती है.