जबलपुर, देशबन्धु. टोल नाके आजकल एक तरह से लूट केंद्र बन गए हैं, और इस समस्या को जनप्रतिनिधि भी नहीं सुन रहे . सड़क एवम परिवहन विभाग ने अपने नियमों में संशोधन करके साठ किलोमीटर की दूरी तय करने पर ही टोल लगने की बात कही है, और इस बात को केंद्रीय सड़क एवम परिवहन मंत्री नितिन गडकरी संसद में भी बता चुके हैं.
जबकि पाटन थानांतर्गत आने वाले जबलपुर तेंदूखेड़ा स्टेट हाईवे पर टिमरी एवम गाड़ाघाट इन दोनों के बीच की दूरी मात्र उन्नीस किलोमीटर है, और इन दोनो टोल बूथों से टोल राशि वसूली जा रही है, इन टोल बूथों के बीच रहने वाले किसानों से जो भूसा और गल्ला भी ले जा रहें हैं तो भी टोल वसूलते हैं , टोल के के कर्मचारी. इन दोनों टोल के बीच लगभग 150 के आस पास कमर्शियल और निजी वाहन है, जिनको पाटन के प्रति चक्कर पर साठ रूपए देने पड़ते हैं.
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तथा यहां रहने वाले निवासियों के टोल पास भी नहीं बन पा रहे, यदि टोल पास बन जाते तो 80,, रूपए हर महीने एक कार चालक देने पड़ते, इससे भी बड़ी राहत मिलती यहां के निवासियों को. इन टोल पर एक समस्या ये भी है की टोल कर्मचारी यात्रियों से ना सिर्फ अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं. बल्कि आए दिन झगड़ा झगड़ा भी करते हैं यात्रियों से उससे भी बड़ी बात यहां पर यात्रियों की जन सुविधाओं तक का अभाव है, और जो कुछ हैं भी ,उनका उपयोग सिर्फ़ स्टाफ के लिए है, कहकर यात्रियों को उपयोग से मना कर दिया जाता है.
प्राथमिक उपचार किट तक उपलब्ध नहीं है, फास्ट टैग होने के बाद भी नकद पैसे लिए जाते हैं , और चिल्लर ना होने का बहाना बनाकर टाफी , बिस्कुट थमा दिए जाते हैं. यहां तक कि शुद्ध पेय जल तक का अभाव है और महत्त्वपूर्ण टेलीफोन नंबर भी नहीं लिखे हैं.
इस समस्या की मूल जड़ है, पाटन मुख्यालय से 4 किलोमीटर दूर स्थित गाड़ाघाट स्थित टोल जो की सागर एम पी आर डी सी के अधीन है,
जबकि इसे दमोह जिले की सीमा पर स्थित होना चाहिए था, जो की पाटन तहसील में स्थित है. और यदि गाड़ाघाट टोल को एम पी आर डी सी तथा केंद्रीय सड़क एवम परिवहन मंत्री से चर्चा करके इसे दमोह जिले की सीमा मे स्थांतरित कर दिया जाए तो , क्षेत्र के नागरिकों को बड़ी राहत मिल सकती है.