नई दिल्ली. भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाई जाने वाली कजरी तीज तीनों प्रमुख तीज में सबसे अनूठी मानी जाती है. यह सुहागिन महिलाओं के लिए अखंड सौभाग्य, भक्ति और समर्पण का पर्व है. इस दिन विवाहित महिलाएं माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा कर पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं.
कजरी तीज 2025 का शुभ मुहूर्त:
इस साल कजरी तीज का पर्व 12 अगस्त, 2025, मंगलवार को मनाया जाएगा.
तृतीया तिथि प्रारंभ: 11 अगस्त, 2025 को सुबह 10:33 बजे
तृतीया तिथि समाप्त: 12 अगस्त, 2025 को सुबह 08:40 बजे
चूंकि तृतीया तिथि 12 अगस्त को सूर्योदय के समय तक रहेगी, इसलिए उदयातिथि के अनुसार व्रत इसी दिन रखा जाएगा.
तीनों तीज में कजरी तीज क्यों है खास?
भारतीय संस्कृति में तीन प्रमुख तीज हैं – हरियाली तीज, हरतालिका तीज और कजरी तीज. हालांकि, इन तीनों का उद्देश्य वैवाहिक सुख और सौभाग्य की कामना करना है, लेकिन कजरी तीज अपनी विशिष्ट परंपरा, ‘नीमड़ी पूजन’ के कारण सबसे अलग है.
नीमड़ी पूजन का महत्व:
कजरी तीज का सबसे महत्वपूर्ण और अनूठा हिस्सा नीमड़ी पूजन है. इस परंपरा में महिलाएं नीम की डाली को देवी का स्वरूप मानकर उसकी पूजा करती हैं. कई स्थानों पर नीम की पत्तियों के ऊपर मिट्टी से देवी की प्रतिमा बनाकर पूजा की जाती है. महिलाएं हल्दी, सिंदूर, चूड़ी, बिंदी और अन्य सोलह श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करती हैं.
धार्मिक मान्यता के अनुसार, नीम में देवी दुर्गा का वास होता है और इसकी पूजा करने से अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है. नीम की शीतलता और औषधीय गुणों को भी इस पूजन से जोड़ा जाता है, जो तन और मन की शुद्धि का प्रतीक है. यह पूजन न केवल धार्मिक भावनाओं को व्यक्त करता है, बल्कि प्रकृति के प्रति सम्मान का संदेश भी देता है.
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कजरी तीज की अन्य परंपराएं:
लोकगीत और झूले: कजरी तीज पर लोकगीत गाने का विशेष महत्व है. ये गीत वर्षा ऋतु, प्रेम और विरह के भावों से भरे होते हैं, जो सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और भावनात्मक एकता का माध्यम बनते हैं.
सोलह श्रृंगार: इस दिन सुहागिन महिलाएं हरी साड़ी, हरी चूड़ियां, सिंदूर, बिंदी और मेहंदी लगाकर सोलह श्रृंगार करती हैं.
चंद्रमा को अर्घ्य: व्रत को पूरा करने के लिए रात में चंद्रमा को अर्घ्य देकर सुखी वैवाहिक जीवन की प्रार्थना की जाती है.