जबलपुर. हाईकोर्ट में पूर्व आदेश के परिपालन में एक दुष्कर्म पीड़िता मेडिकल रिपोर्ट पेश की गई। जिसमें विशेषज्ञ डॉक्टरों ने बताया कि आठ माह का गर्भपात कराने से बच्चे व पीड़िता की जान को खतरा हो सकता है।
यह सुनते ही पीडि़ता और उसके अभिभावकों ने गर्भपात से इंकार कर दिया। जस्टिस अमित सेठ की एकलपीठ ने परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए गर्भ जारी रखने की अनुमति प्रदान की है।
दरअसल हाईकोर्ट की 20 फरवरी 2025 की गाइडलाइन के अंतर्गत यदि कोई नाबालिग रेप पीड़िता 24 हफ्ते (करीब छह महीने) से ज्यादा गर्भवती हो, तो गर्भपात के लिए हाईकोर्ट से मार्गदर्शन लेना होगा।
यह आदेश सभी जिम्मेदार विभागों को दिया गया था। इसके बाद बालाघाट जिला निवासी नाबालिगा के गर्भपात की अनुमति के लिए बालाघाट जिला अदालत ने हाईकोर्ट को पत्र लिखा था। हाईकोर्ट ने पत्र को याचिका मानकर सुनवाई की। कोर्ट ने गत 9 जून को मेडिकल टीम गठित कर आठ माह के गर्भपात से होने वाले नुकसान के बारे में बताने को कहा था।
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बच्ची व उसके अभिभावकों को भी आठ माह के गर्भपात की जटिलताओं से अवगत कराने को कहा गया था। गुरुवार को मेडिकल टीम की ओर से रिपोर्ट पेश की गई। बताया गया कि पूर्ण काल तक गर्भ धारण करना बच्ची के मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालेगा।
आठ माह का गर्भपात किया जा सकता है, किन्तु इसमें बच्ची व उसके गर्भस्थ शिशु की जान को खतरा है। गर्भपात की दशा में पीड़िता के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है।
रिपोर्ट में बताया गया कि इस जानकारी के बाद पीडि़त व उसके अभिभावक गर्भपात के लिए सहमत नहीं हैं। रिपोर्ट का अवलोकन के बाद न्यायालय ने पीड़िता और उसके अभिभावकों को उनकी इच्छानुसार गर्भ पूर्ण करने के लिए स्वतंत्रता दी।