सतना, देशबन्धु। मौसम के बदलते तेवर के चलते मौसमी बीमारिया भी तरेर हो जाती है। इसी के चलते इन दिनों जिला अस्पताल में मरीजों की लम्बी कतारे लग रही है और मरीजों को जांच के लिए घंटे भर से अधिक या कहें दो-दो घंटे लाईन में खड़ें रहना पड़ता है। जिला अस्पताल के अंदर आयुष केन्द्र के ठीक बगल से बना ओपीडी गुणवत्ताहीन निर्माण के चलते करीब साल भर से अधिक समय तक बंद पड़ा था। क्योंकि इस बड़े ओपीडी हाल के छत का प्लास्टर जांच देखरेख के समय चिकित्सक चेम्बर से लेकर बाहर तक दो-तीन बार गिर चुका है।
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जिससे खतरा देखकर बंद कर दिया गया था और पुराने ओपीडी व नैदानिक केन्द्र में ज्यादातर बीमारियों की जांच व देखरेख होने लगी। अब दो-तीन महीने पहले से फिर प्रारंभ हुए इस आयुष ओपीडी में कई चिकित्सक कक्ष बने है। जहां मेडिसिन व शिशुरोग चिकित्सक कक्षों के सामने मरीजों की लम्बी लाईने लगी रहती है। इधर नैदानिक केन्द्र में अस्थिरोग की जांच व शल्य क्रिया कराने वालों की भी लम्बी लाईने लगी रहती है। मरीजों में सबसे ज्यादा इन दिनों महिला मरीजें अत्यधिक नजर आती हैं वह भी जिले के दूर दराज के इलाको व जिले के बाहर से आने वाले मरीजों की भीड़ ज्यादा रहती है।
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कायाकल्प के चलते कई जगह हो रहा निर्माण
जिला अस्पताल के अंदर जहां सह अधीक्षक सिविल सर्जन कार्यालय है वहां से लेकर बगल तक धात्री महिलाओं के कक्ष तक निर्माण कार्य चल रहा है। सीएस कक्ष के सामने बैठने वाले चिकित्सकों का कक्ष भी या तो नैदानिक केन्द्र में है या फिर से चालू हुए ओपीडी में है। चिकित्सक कक्ष तितर-बितर होने से मरीजों को भी इधर-उधर भटकना पड़ता है। सिविल सर्जन इन दिनों ट्रामा यूनिट के ऊपर तीसरी मंजिल में बैठते या फिर जिला अस्पताल के अंदर आरएमओ आफिस में बैठते है।
एक हजार से ऊपर प्रतिदिन मरीज
जिला अस्पताल में इन दिनों एक हजार से उऊपर डेढ़ हजार के लगभग मरीज जिले भर से प्रतिदिन आ रहे है। पुराने ओपीडी पर्ची काउंटर से मिली जानकारी मुताबिक औसतन प्रतिदिन लगभग 950 से 1150 मरीज आ रहे है। जिनमें ज्यादातर खांसी, सर्दी, जुखाम, पेटदर्द, सिरदर्द, उल्टी-दस्त, गठिया, बात, सांस लेने में तकलीफ, दमा, स्वांस, घुटनों में दर्द सहित कुछ टीवी के मरीज शामिल है। मगर सवाल यह है कि चार सौ बिस्तरों वाले इतने बड़े एनक्यूएस में शामिल इस सरकारी जिला अस्पताल में आज दिनांक तक चिकित्सकों के लिए स्थाई कक्ष क्यों नहीं बन पाए।
कई सालों से जिला अस्पताल का कायाकल्प के चलते चिकित्सक कक्ष या तो नैदानिक केन्द्र या नए पुराने ओपीडी में बनते रहते है। यही हाल क्रिटिकल मरीजों के लिए बने आईसीयू कक्षों का हाल है। संभागीय चिकित्सा अधिकारियों से लेकर राज्य और केन्द्र तक के चिकित्सा अधिकारी तथा जिला प्रशासन समय-समय पर अस्पताल आकर व्यवस्थाओं का जायजा लेता है और निर्देश देकर चले जाते है। लेकिन सही ढग़ से व्यवस्थाएं इस सरदार वल्लभ भाई जिला चिकित्सालय की सुधरनें का नाम ही नहीं ले रही हैं।