अर्थशास्त्री राधिका पांडे का निधन: शनिवार, 28 जून को देश ने एक बेहतरीन अर्थशास्त्री, नीति विश्लेषक और लेखिका राधिका पांडे को खो दिया। महज 46 साल की उम्र में उनका निधन हो गया, जिसकी वजह बनी आपातकालीन लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी, जो सफल नहीं हो पाई। राधिका पांडे को सबसे पहले टाइफाइड हुआ था, जिसके बाद उनके लिवर की कार्यप्रणाली पर असर पड़ा। हालत बिगड़ने पर उन्हें पीलिया (jaundice) की शिकायत हुई, और फिर उन्हें नई दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज (ILBS) में भर्ती कराया गया।
डॉक्टरों ने राधिका पांडे की गंभीर हालत को देखते हुए लिवर ट्रांसप्लांट करने का फैसला किया। लेकिन सर्जरी के बाद उनकी तबीयत और बिगड़ गई। उन्हें संक्रमण हो गया और उनके शरीर के अंग धीरे-धीरे काम करना बंद करने लगे। डॉक्टरों ने उन्हें बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो पाए।
केवल 46 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। उनके अचानक चले जाने से शिक्षा, अर्थशास्त्र और नीति से जुड़े लोगों को गहरा दुख हुआ है। उनके छात्र और साथी उन्हें हमेशा एक समझदार और सादा सोच वाली विद्वान के रूप में याद रखेंगे। आइए जानते हैं कि किन लिवर ट्रांसप्लांट के दौरान क्या-क्या दिक्कतें आ सकती हैं?
कौन थी राधिका पांडेय?
राधिका पांडेय, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (NIPFP), नई दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर थीं। वे मैक्रोइकोनॉमिक्स, वित्तीय क्षेत्र विनियमन, और सार्वजनिक नीति की विशेषज्ञ थीं। अपने लगभग दो दशक लंबे करियर में उन्होंने न सिर्फ अनेक सरकारी समितियों में योगदान दिया, बल्कि कई प्रभावशाली शोध-पत्र भी प्रकाशित किए। इसके साथ ही वे एक वरिष्ठ स्तंभकार भी थीं, जो जटिल आर्थिक मुद्दों को सरल भाषा में आम जनता तक पहुंचाने के लिए जानी जाती थीं।
लिवर ट्रांसप्लांट की जटिलताएं
राधिका पांडेय को एक आपातकालीन स्थिति में लिवर ट्रांसप्लांट करवाना पड़ा। हालांकि, उनकी मूल बीमारी से जुड़ी विस्तृत जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन यह बताया गया है कि सर्जरी के दौरान और बाद में गंभीर जटिलताएं उत्पन्न हो गई थीं, जो उनकी मृत्यु का कारण बनीं।
लिवर ट्रांसप्लांट एक अत्यंत संवेदनशील और जोखिम भरा ऑपरेशन होता है, जिसे आमतौर पर लिवर फेलियर की अंतिम अवस्था में किया जाता है। खासतौर पर आपातकालीन सर्जरी में जोखिम और भी बढ़ जाता है, क्योंकि तब मरीज की शारीरिक स्थिति पहले से ही बेहद नाजुक होती है। लिवर ट्रांसप्लांट की प्रमुख जटिलताएं।
तत्काल जटिलताएं (Perioperative) – सर्जरी के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव, खून के थक्के जमना, और हृदय या सांस की समस्याएं आम हैं।
प्रारंभिक पोस्ट-ऑपरेटिव जटिलताएं – संक्रमण, शरीर द्वारा नए लिवर को अस्वीकार करना, पित्त नली की समस्याएं और किडनी डैमेज जैसी स्थितियां पहले कुछ हफ्तों में देखी जाती हैं।
लंबे समय तक होने वाले कॉम्पिलिकेशन- पुराने समय में अस्वीकृति, पुरानी लिवर बीमारी की वापसी और प्रतिरक्षा प्रणाली को दबाने वाली दवाओं के दुष्प्रभाव, मरीज के दीर्घकालिक स्वास्थ्य पर असर डालते हैं। हालांकि सर्जरी तकनीकों और पोस्ट-ऑपरेटिव देखभाल में सुधार हुआ है, फिर भी आपातकालीन मामलों में मृत्यु दर अधिक देखी गई है। ‘लिवर ट्रांसप्लांटेशन’ नामक मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि संक्रमण और ग्राफ्ट रिजेक्शन अभी भी मृत्यु के प्रमुख कारण हैं, खासकर उन मरीजों में जिन्हें आपातकालीन ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है।
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लिवर को लेकर सजग रहें
राधिका पांडेय की असामयिक मृत्यु यह स्पष्ट संकेत देती है कि लिवर से जुड़ी बीमारियों और ट्रांसप्लांट प्रक्रियाओं के प्रति समाज को और अधिक सजग होना होगा। लिवर फेलियर एक मूक हत्यारा साबित हो सकता है, जो धीरे-धीरे गंभीर अवस्था में पहुंच जाता है। इसलिए समय रहते जाँच, इलाज और स्वस्थ जीवनशैली अपनाना अत्यंत जरूरी है। साथ ही, ऑर्गन ट्रांसप्लांट से जुड़ी जटिलताओं, विशेष रूप से आपातकालीन मामलों में, समाज में व्यापक जानकारी और जागरूकता की आवश्यकता है ताकि भविष्य में अधिक जानें बचाई जा सकें।