पाटन, देशबन्धु. हाल ही के दिनों में यह देखा गया है कि पहले शहरी इलाकों में दिखने वाली गौरैया चिड़िया धीरे धीरे गायब हुई अब ग्रामीण इलाकों से भी गायब होने लगी है। बुजुर्ग बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में पेड़ों की कटाई, प्रदूषण, सड़क किनारे खेत खलिहानों में लगे मोबाइल टावर, परंपरागत आवासों में बदलाव कर पक्के मकानों का निर्माण जैसे कई प्रमुख कारण हैं। दो-ढाई दशक पहले गोरैया पहले शहरी इलाकों में आसानी से दिख जाती थी, लेकिन अब उनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है। इसी तरह ग्रामीण अंचलों से भी गौरैया चिड़िया की संख्या में कमी देखने को मिल रही है।
पेड़ों की कटाई, वायु और जल प्रदूषण, परंपरागत आवासों में बदलाव प्रमुख वजह : डॉ. सिसोदिया
ग्रामीण इलाकों से विलुप्त होती गौरैया चिड़िया
अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी गौरैया चिड़िया की संख्या निरंतर घट रही है,जो कि चिंता का विषय है। पाटन पशु चिकित्सालय में पदस्य डॉक्टर रवींद्र सिसोदिया बताते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी तेजी से हो रहे शहरीकरण से गौरैया चिड़िया के आवास नष्ट हो रहे हैं और उनके लिए रहने और घोंसला बनाने की जगह दिनों दिन कम होती जा रही है। इसके अलावा वायु और जल प्रदूषण भी गौरैया के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं। वही रासायनिक खाद और कीटनाशकों के अधिक प्रयोग से गौरैया के भोजन में कमी हो रही है और उनके भोजन के स्रोत ग्रामीण इलाकों में बहुत तेजी से खत्म हो रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बने पक्के घरों और इमारतों में हरे-भरे पेड़ो की कमी के कारण गौरैया चिड़िया को घोंसला बनाने के लिए उपयुक्त स्थानों की कमी भी प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं। जानकार बताते हैं कि हाल ही के दिनों में किए गए अध्ययनों से पता चला है कि मोबाइल टावरों से निकलने वाली विद्युत चुम्बकीय किरणों से भी गौरैया की आबादी में भारी गिरावट देखने को मिल रही है।
गौरैया के संरक्षण के उपाय
घरों में गौरैया के लिए घोंसले बनाने की जगह उपलब्ध कराएं, जैसे कि छत पर या बालकनी में छोटे घोंसले लगाएं। घरों के आस पास फलदार पेड़ पौधे लगाएं, जिससे गौरैया को रहने और खाने के लिए भोजन मिल सके। वही प्रदूषण को कम करने के लिए अपने आस-पास सफाई रखें और पर्यावरण को बचाने के लिए प्रयास के साथ साथ ग्रामीणों को गौरैया के महत्व के बारे में जागरूक करें और उनके संरक्षण के लिए प्रेरित करने से ही गौरैया के अस्तित्व को बचाया जा सकता है।