जबलपुर, देशबन्धु. प्रदेश के आदिवासी आबादी बाहुल्य जिलों में सरकार की योजनाओं का जरूरतमंदों तक पहुंचाने का काम नहीं हो पा रहा है. इसके लिये जवाबदार महात्मा गांधी राज्य ग्रामीण विकास संस्थान की भूमिका को लेकर सवाल उठे हैं. पेसा कानून के अंतर्गत कार्यशाला तो जब तब आयोजित की जाती है, परंतु इनका जमीन पर कितना असर हो पा रहा है, इसे लेकर असमंजस बना हुआ है.
एक बार फिर अलग-अलग जिलों में इसी तरह के सेमीनार आयोजित किये जाने की तैयारी है. इसके लिये विभाग के अधिकारी जुटे हुये हैं.
गौरतलब है कि साल में कम से तीन बार प्रदेश के उन चुनिंदा जिलों में महात्मा गांधी राज्य ग्रामीण विकास संस्थान ग्रामीण अंचल से जुड़े हर छोटे और बड़े पदाधिकारियों की क्लास लगाने सेमीनार आयोजित करता है. इसमें विभागीय अधिकारियों के साथ कानून के जानकार उन बातों को बताने का काम करते हैं, जिनका आदिवासी वर्ग से आने वाले ग्रामीणों का सीधा संबंध माना जाता है. इसके बाद भी अब भी ग्रामीणों को सरकार की योजनाओं का लाभ मिलने में असुविधा हो रही है.
परीक्षा केंद्र के 100 मीटर के दायरे में परीक्षक, परिक्षार्थियों के अलावा अन्य का प्रवेश वर्जित
इन बिंदुओं को समझाने लगती है क्लास- सूत्रों के अनुसार महात्मा गांधी राज्य ग्रामीण संस्थान आधारताल द्वारा अलग-अलग मौकों पर आदिवासी वर्ग से आने वाले ग्रामीणों को उन विषयों को समझाने कार्यशाला लगाई जाती है, जिनसे इनका सीधा संबंध होता है. जिसमें सूचना का अधिकार, वन्य संपदा एवं वन्य प्राणियों से जुड़े कानून, मनरेगा इत्यादि शामिल हैं.
इसके अलावा उन योजनाओं से जुड़ी बातों को बताया जाता है, जो विशेष तौर इस वर्ग को देखते हुये सरकार ने बनाया है. ऐसा देखने में आता है, जंगल के करीब रहने वाले ग्रामीणों को राजस्व और महात्मा गांधी रोजगार गारंटी से मिलने वाले काम के बदले मिलना वाला मेहनताना प्राप्त करने के लिये संबंधितों के यहां चक्कर काटने पड़ते हैं.
पंचायत के इन पदाधिकारियों को प्रशिक्षण- बताया जाता है कि जब भी इस तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, उसमें प्रमुख रूप से सरपंच, पंच और सचिव और कोटवारों को प्रमुख रूप से शामिल किया जाता है. इसके अलावा स्वासहायता महिला समूहों को भी इस तरह की कार्यशाला का हिस्सा बनाया जाता है.
इन्हें अलग से प्रशिक्षण दिया जाता है. इस दौरान कई बार स्वासहायता समूहों की महिलाओं से ही खाना बनवाया जाता है, यह और बात है उनको भी अपने विभाग के अधिकारियों के चक्कर इसलिये लगाने पड़ते हैं क्योकि समय पर भुगतान नहीं मिल पाता है.