भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिससे देश की सियासत में हलचल मच गई. हालांकि उन्होंने अपने इस्तीफे में स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया, लेकिन सूत्रों के अनुसार उनके इस कदम के पीछे एक गंभीर संवैधानिक टकराव की भूमिका मानी जा रही है — जो जुड़ा है जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव से.
महाभियोग का नोटिस बना इस्तीफे की वजह?
राज्यसभा के सभापति के रूप में जगदीप धनखड़ को जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ विपक्षी सांसदों द्वारा लाया गया महाभियोग प्रस्ताव मिला था. इस प्रस्ताव पर विपक्ष के 63 सांसदों के हस्ताक्षर थे. धनखड़ ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए इसकी प्रक्रिया को राज्यसभा में आगे बढ़ाने की घोषणा कर दी.
इस कदम ने सरकार को चौंका दिया क्योंकि उसकी योजना थी कि महाभियोग की शुरुआत लोकसभा से की जाए, जहां उसे बहुमत हासिल है. इसके बाद ही प्रस्ताव राज्यसभा में लाया जाता. लेकिन धनखड़ ने राज्यसभा से प्रक्रिया शुरू करने का फैसला कर लिया, जिससे मामला विपक्ष के पक्ष में जाता दिखा.
सरकार को नहीं थी नोटिस की जानकारी
धनखड़ द्वारा स्वीकार किए गए महाभियोग नोटिस की जानकारी सरकार के फ्लोर लीडर्स को पहले से नहीं थी. इतना ही नहीं, विपक्ष द्वारा दिए गए इस नोटिस में भाजपा या उसके सहयोगी दलों के किसी सांसद के हस्ताक्षर नहीं थे. माना जा रहा है कि यही बात सरकार और धनखड़ के बीच टकराव की वजह बनी.
विशेषज्ञों के अनुसार, यह संचार की विफलता और संसदीय प्रक्रिया को लेकर असहमति का मामला था, जिसने धनखड़ को यह महसूस कराया कि उनकी भूमिका पर राजनीतिक दबाव बढ़ रहा है. इससे क्षुब्ध होकर उन्होंने मानसून सत्र के पहले ही दिन इस्तीफा दे दिया.
प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की प्रतिक्रियाएं
धनखड़ के इस्तीफे के कुछ ही घंटे बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर उनके स्वास्थ्य की कामना की और उनके योगदान की सराहना की.
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महाभियोग प्रस्ताव पर क्या है सरकार की योजना?
सरकार की रणनीति थी कि जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते महाभियोग प्रस्ताव पहले लोकसभा से पास कराया जाए, जहां संख्या बल मजबूत है. इस प्रस्ताव पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी, भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद और अनुराग ठाकुर सहित कुल 145 सांसदों के हस्ताक्षर थे, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि सरकार ने इस मुद्दे पर व्यापक समर्थन जुटा लिया था.
धनखड़ द्वारा राज्यसभा से प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा ने सरकार की इस योजना को उलझा दिया, जिससे मामला राजनीतिक असहमति और संवैधानिक मर्यादा के बीच फंस गया.