कहा परियोजना को भूमि दे चुके हैं और अब नौकरी न मिलने से रोजी रोटी के साथ भविष्य अंधकार में
इंदौर: कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा कल से इंदौर में शुरू हुई। राहुल गांधी की इस यात्रा में पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य जिले सरगुजा से 50 आदिवासियों का समूह उनसे मुलाकात करने इंदौर पहुंचा। जिले के उदयपुर विकासखंड में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) को आवंटित परसा कोयला परियोजना में आने वाले कुल छः गांव के ग्रामीणों ने राहुल गांधी को परियोजना शुरू कराने के लिए प्रार्थना पत्र देकर अपनी मांगों और समस्याओं से अवगत करवाया। सुरगुजा जिले का यह समूह इंदौर में भारत यात्रा में भी जुड़े और टीम राहुल गाँधी से बात कर अपने जिले के हित में राजस्थान की महत्वाकांक्षी योजना जल्दी से जल्द शुरू करवाने पर जोर दिया। वहीं कांग्रेस के नेतागणों ने भरोसा जताया की वह पार्टी के आलाकमान तक यह बात पहुंचाएंगे।
इसी महीने 3 नवंबर को इन्ही मांगों को लेकर परसा कोल परियोजना के आसपास के प्रभावित ग्रामों के 1700 से ज्यादा ग्रामीणों ने छत्तीसगढ़ प्रदेश के मुखिया श्री भूपेश बघेल और जिले के विधायक और स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्री श्री टी एस सिंहदेव को भी प्रार्थना पत्र लिखा था। महत्वपूर्ण बात यह है की छत्तीसगढ़ और राजस्थान दोनों ही राज्यों में कांग्रेस की सरकार है और परसा खदान उनके परस्पर फायदे की परियोजना है। एक तरफ छत्तीसगढ़ के पिछड़े हुए जिले में हज़ारो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर बनेंगे और राज्य को लोकहित के कार्यक्रम के लिए सालाना सैकड़ों करोड़ रुपये का कर और राजस्व भी मिलेगा। दूसरी तरफ राजस्थान के आठ करोड़ बिजली उपभोक्ताओं को सस्ती और निरंतर सेवा मिलती रहेगी।
ग्रामीणों ने पत्र में लिखा है कि ” आरआरवीयूएनएल को वर्ष 2012 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में तीन कोयला खदान परसा ईस्ट केते बासेन, परसा और केते एक्सटेंशन का आवंटन किया गया था। जिसमें से पहली खदान का कार्य पिछले 10 वर्षों से चल रहा है। जबकि दूसरी खदान परसा कोल परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण का कार्य पांच वर्ष पूर्व शुरू हुआ। जिसमें ग्राम साल्हि, जनार्दनपुर, फत्तेपुर, हरिहरपुर, तारा और घाटबर्रा के कुल 722 लोगों ने अपनी जमीन देकर मुआवजा प्राप्त कर लिया है। इसमें से 478 लोगों ने रोजगार के एवज में एकमुश्त मुआवजा ले लिया है जबकि 188 लोगों ने रोजगार का विकल्प चुना था और उनमें से अब तक 10 लोगों को नौकरी मिल चूकी है। शेष 178 लोग नौकरी पाने की प्रतीक्षा में हैं। किन्तु कुछ बाहरी गैर सरकारी संगठन द्वारा इस परियोजना के विरोध में कई तरह की भ्रांतियां फैलाने के कारण प्रभावितों इलाकों में भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। जिसके दबाव में आकर तत्कालिक सरकार द्वारा परसा कोल परियोजना को रद्द करने का मन बना लिया है। इस स्थिति में एक बार फिर हमारे सामने भुखमरी की स्थिति पैदा होने लगी है। इसका कारण यह है की हमारी जमीन बिकने के बाद भी अब तक नौकरी नहीं मिल पाई है जिसका मुख्य कारण परसा कोल परियोजना का ऑपरेशन अब तक शुरू न हो पाना। इस वजह से गुजर बसर करने के लिए अब ना तो कृषि कर पा रहे हैं और न ही अब तक नौकरी मिल पाई है। इस वजह से अब हमें अपने परिवार के गुजर बसर के लिए मुआवजे की राशि खर्च करनी पड़ रही है। जो की एक तरह से हमारे परिवार के लिए भविष्य निधि की तरह है।”
क्या है राजस्थान खदान का मामला ?
सरगुजा जिले में स्थित परसा कोल परियोजना राजस्थान राज्य की विज इकाई आरआरवीयूएनएल को तत्कालीन यूपीए सरकार में आवंटित की गयी दूसरी कोयला खदान है। जिसको लेकर पिछले कुछ महीनों से रायपुर स्थित की कुछ गैर सरकारी संगठनों द्वारा विरोध किया जा रहा है। हालाँकि बड़ा स्थानीय तबका राजस्थान सरकार की परियोजनाओं का स्वागत कर रहे है और सालो से खदानें खुलवाने की अपनी मांग पर अड़े हुए है। अब जिन ग्रामीणों ने अपनी जमीन अधिग्रहण में दे दी है और मुआवजा प्राप्त कर लिया है उनमें परसा कोयला परियोजना में रोजगार की आश जगने लगी थी। और जब परियोजना के काम में एक बार फिर अवरोध की सूचना जैसे ही मिली सभी जमीन प्रभावितों का गुस्सा फूट पड़ा। सैकड़ों की संख्या में ग्रामीणों ने खदान के समर्थक पुनः नौकरी की मांग के लिए आंदोलन शुरू कर दिया है। वहीं बेरोजगार युवकों ने जल्द नौकरी न मिलने पर अपने आंदोलन को उग्र करने की भी चेतावनी दी।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एकमत
मार्च के अंत में, कांग्रेस शासित राज्यों के दोनों मुख्यमंत्रियों ने रायपुर में अपनी तीन खनन परियोजनाओं को क्रियान्वित करने में आरआरवीयूएनएल के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए मुलाकात की। इसके तुरंत बाद, भूपेश सरकार ने परसा ब्लॉक और पीईकेबी ब्लॉक के विस्तार के लिए मंजूरी दे दी थी। हालाँकि, आरआरवीयूएनएल संचालन का कार्य अब तक शुरू नहीं कर पाया है, जबकि स्थानीय लोग जिन्होंने अपनी जमीन और समर्थन दिया है, वे वर्षों से आजीविका के अवसरों की प्रतीक्षा कर रहे हैं और नौकरी न मिलने तथा रोजगार के अभाव में लाखों रुपये का नुकसान की बात भी कह रहे हैं। इन सभी प्रभावित ग्रामीणों ने मई में भी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तथा आरआरवीयूएनएल के प्रबंध निदेशक (एमडी) को एक पत्र में कुछ स्वयं घोषित कार्यकर्ता के द्वारा परसा कोयला परियोजना को बदनाम करने के लिए ‘अवैध विरोध’ की बात लिखकर खदान खोलने की गुहार लगाई थी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तो पेशेवर आन्दोलनकारीओं को सीधा कह दिया था की अगर उन्हें खदान और विद्युत् परियोजनाओं से कोई आपत्ति है तो पहले वह अपने घर का बिजली कनेक्शन कटवा दे। सरकार के निर्णायक रव्वैये को देखकरबाहरी आन्दोलनकारीओं ने चुप्पी साध ली थी और स्थानीय लोगो प्रशासन पर भरोसा बढ़ा है।
परसा खदान परियोजना के विरोध में माननीय उच्च न्यायालय के सामने लगी सभी पांचो याचिका भी खारिज
छत्तीसगढ़ के उच्च न्यायालय ने मई 11, 2022 को परसा खदान परियोजना के कोल बेयरिंग एक्ट के तहत् अधिग्रहण के विरोध में दायर सभी पांच याचिकाओं को देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण परियोजना बताते हुए लगाए गए सभी अरोपों और दलीलों को खारिज कर दिया था। विदेशी फंड से लदे संगठन क़ानूनी दांवपेंच और सोशल मीडिया पर भारी खर्च कर सुरगजा के विरुद्ध षड़यंत्र करते रहते है।
पहले भी लिख चुके हैं राहुल गाँधी को पत्र
इन्ही ग्रामीणों ने गत माह जून में राहुल गाँधी को पत्र प्रेषित कर दोनों ही कांग्रेस- शासित राज्य होने की वजह से विकास-विरोधी गतिविधि चलाने वाले बाहरी लोगों को प्रतिबंधित करने तथा नौकरी के लिए अपनी मांग रखी थी। ग्राम साल्हि के वेदराम और उनके अन्य साथियों ने पुनर्वास एवं पुनर्व्यस्थापन योजना के तहत रोजगार के विकल्प का चयन किया था ताकि जल्दी से उन्हें रोजगार प्राप्त हो सके किन्तु पिछले 5 सालों से हम इसका इंतजार कर रहे है। परसा कोल माइंस को जमीन देकर मुआवजा भी उठा लिए हैं। और अब उनकी जमा पूंजी भी गुजर बसर में खर्च होने की बात लिखी थी।
इस तरह छत्तीसगढ़ के ये सभी आदिवासी ग्रामीण खदान के न खुलने से होने वाली रोजगार और नौकरी की परेशानियों इत्यादि मांगों के पूरा न होने की वजह से कल मध्यप्रदेश के इंदौर पहुंचकर भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने पहुंचे। किन्तु पुरजोर कोशिश के बावजूद राहुल के रैली में चलने वाले हुजूम में मिलने में सफल न हो सके। हालाँकि राहुल के टीम के एक सदस्य ने ग्रामीणों के प्रतिनिधी मंडल से पत्र लेकर मामले को राहुल तक पहुंचाने का आश्वासन दिया।