सतना, देशबन्धु। सनातनियों, अब समय आ गया है कि हम अपने छोटे-छोटे मतभेद भुलाकर एकजुट हों। अगर हमें अपनी संस्कृति, अपनी आस्था, और अपने भविष्य को बचाना है, तो हमें अपने बच्चों को सनातन धर्म का सच्चा ज्ञान देना होगा, उन्हें अपनी जड़ों से जोडऩा होगा। याद रखिए अगर आज हम चुप रहे, तो कल आने वाली पीढिय़ां हमें माफ नहीं करेंगी। उक्त उद्गार व्यासपीठाचार्य श्री मज्जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी घनश्यामाचार्य महाराज ने नागौद रोड साई गार्डन में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के दौरान कहीं।
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कथा के क्रम में स्वामी घनश्यामाचार्य महाराज ने श्रद्धालुओं के ऊपर अमृत कथा की वर्षा करते हुए कहा कि अब नहीं जागे तो बहुत देर हो जाएगी। जागो सनातनियों — धर्म और देश की रक्षा के लिए एक हो जाओ। उन्होने कहा कि सनातन धर्म में विवाह केवल एक सामाजिक आयोजन नहीं, बल्कि एक यज्ञ है। यह एक ऐसा पवित्र संस्कार है, जिसे सूयाज़्स्त से पहले सम्पन्न किया जाना चाहिए। हमारे ऋषि-मुनियों ने सिखाया था कि दिन का प्रकाश देवत्व का प्रतीक है, और रात्रि का अंधकार आसुरी शक्तियों के प्रभाव का समय है। रात्रि में विवाह करना उन शुभ ऊर्जाओंं का अपमान है जो जीवन के इस पवित्र बंधन को आशीर्वाद देती हैं।
कथा के क्रम में स्वामी घनश्यामाचार्य महाराज ने कहा कि घर को हमेशा एक पवित्र स्थल माना गया है। घर में अग्नि को साक्षी मानकर, अपने ही आंगन में, अपने परिजनों और देवताओं की उपस्थिति में विवाह करना सनातन परंपरा की आत्मा है। होटल जैसे स्थान, जहां केवल बाहरी दिखावा होता है, वहां वह आत्मिक पवित्रता संभव नहीं जो घर के वातावरण में सहज रूप से होती है। आज आवश्यकता है कि हम पुन: अपने सनातन संस्कारों की ओर लौटें। हम अपने बच्चों को यह सिखाएं कि आधुनिकता का मतलब अपनी जड़ों को काटना नहीं होता, बल्कि अपने गौरवशाली अतीत को गर्व से अपनाना होता है। अपने प्रत्येक संस्कार में, हर कार्य में हमें अपनी संस्कृति की महक बनाए रखनी चाहिए, तभी सनातन धर्म अक्षुण्ण रहेगा और हमारी पहचान बनी रहेगी।