छतरपुर, देशबन्धु. सिटी कोतवाली के बाला जी मंदिर के सामने बने लोक निर्माण विभाग के भवन के मामले में मंगलवार को हाईकोर्ट में सुनवाई की गई। न्यायाधीश द्वारकाधीश बंसल की अदालत ने इस मामले में छतरपुर जिला प्रशासन द्वारा की जा रही कार्रवाई पर नाराजगी जताते हुए कहा कि जब हाईकोर्ट ने फैसला राकेश उपाध्याय के पक्ष में दे दिया है, तो कलेक्टर, लोनिवि, तहसीलदार और जिला पंजीयक कैसे कार्यवाही कर रहे हैं। करना है तो सुप्रीम कोर्ट में अपील करें, सीधी अलग से की जा रही कार्रवाई गलत है।
न्यायाधीश श्री बंसल ने सीधे शब्दों में कहा जब हाई कोर्ट के फैसले में उक्त बिल्डिंग डिक्री पास करते हुए बिल्डिंग का मालिकाना अधिकार राकेश उपाध्याय व उनके छोटे भाई के परिजनों को दिया गया है तो, कैसे नोटिस देकर बिल्डिंग खाली करने का आदेश दे रहे हैं। प्रशासन के द्वारा दिए गए अतिरिक्त एक्शन और रजिस्ट्री पर लगाई गई रोक, आखिर क्यों किया जा रहा यह समझना पड़ेगा
उन्होंने बताया जो लोक निर्माण विभाग और जिला प्रशासन हाई कोर्ट में केस हार गया है, तो उन्हें माननीय सुप्रीम कोर्ट में इसकी अपील करना चाहिए। जबकि नियत समय में अपील तो की नहीं, अब अलग से एक्शन ले रहे हैं। हाईकोर्ट के ऑर्डर के पश्चात जिला कलेक्टर, एसपी, लोनिवि, तहसीलदार और जिला पंजीयक को एक्शन लेने का क्या अधिकार है।
बता दें कि मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान अब दोनों पक्षों को नोटिस इशू किए गए हैं। इस कंटेंट आफ कोर्ट के आवेदन पर दूसरा पक्ष सामने आने के बाद फैसला लिया जाएगा। बहरहाल ये मामला इन दिनों सरगर्म है, जो लगातार गर्माता जा रहा है। इसमें पांच लोगों के खिलाफ सिटी कोतवाली में एफआईआर दर्ज कराई गई है। कई को निलंबित करके उनकी विभागीय जांच के निर्देश दिए गए हैं। चर्चा तो ये भी है कि बडे अधिकारियों को बचाने के लिए छोटों पर कडी कार्यवाही की जा रही है।
बर्खास्त कर्मचारी बोेला-सब अफसरों की मिलीभगत है छतरपुर नगर पालिका कार्यालय में नामांतरण से जुड़ी एक फाइल के गायब होने से मामला संदिग्ध बन गया है। इस मामले में बर्खास्त किए गए संविदा कर्मचारी उमाशंकर पाल, जिसके खिलाफ थाने में एफआईआर भी दर्ज कराई गई है। उसने एक वीडियो जारी करके सीएमओ माधुरी शर्मा और राजस्व शाखा प्रभारी राजेंद्र नापित पर फाइल गुम करके जांच टीम को गुमराह करने का गंभीर आरोप लगाया है।
यह वही फाइल थी जिसमें लोक निर्माण विभाग से संबंधित भवन का नामांतरण दर्ज किया गया था। उसने खुद को बेकसूर बताते हुए कहा है कि हमें जबरन फंसाया जा रहा है, सब बड़े अधिकारियों की मिलीभगत है। हमने केवल आदेशों का पालन किया। अगर जांच निष्पक्ष हो, तो सब कुछ सीसीटीवी में साफ हो जाएगा।
अगर किसी को शक है, तो हमारा नार्को टेस्ट भी कराया जाए। बर्खास्त संविदा कर्मी उमाशंकर पाल ने बताया वह राजस्व शाखा प्रभारी राजेंद्र नापित के अधीन रिकार्ड रुम में काम करता था। फाइल दिसंबर महीने में तैयार की गई थी, जब राजाराम कुशवाहा प्रभारी थे। अप्रैल 2025 में प्रभारी बदलकर राजेंद्र नापित बनाए गए,
जिनके कार्यकाल में विवाद शुरू हुआ। उमाशंकर ने अपने बयान में कहा कि अंकित मिश्रा नाम के व्यक्ति ने सीएमओ और कर्मचारियों पर लगातार दबाव बनाया। प्रभारी श्री नापित ने रजिस्टर में दर्ज नामों को बदलने का निर्देश दिया और कुछ प्रविष्टियां उनके सामने सुधार दी गईं। फाइल की ऑनलाइन एंट्री और अप्रूवल राजेश नापित की आईडी से किया गया था।
जांच के दौरान जब फाइल मांगी गई, तो बताया गया कि फाइल पूरी और सही है। 9 अक्टूबर को जब सीएमओ ने फाइल मंगाई, तो पता चला कि रजिस्टर में दर्ज जानकारी और ऑनलाइन रिकॉर्ड में अंतर है। तहसीलदार और एसडीएम ने शाम 4 बजे से फाइल की खोजबीन की, लेकिन फाइल और रजिस्टर दोनों गायब मिले। उमाशंकर पाल ने कहा कि पिछले दो दिनों से उसे धमकाया जा रहा है कि वह अपने ऊपर मामला ले ले, बाद में हम बचा लेंगे। वह डर और तनाव के कारण जी नहीं पा रहा है।
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